VandeMataramHistory : वंदे मातरम गीत का इतिहास क्या है?
There are many such moments recorded in the history of India, which do not lose their shine even after the passage of time.
VandeMataramHistory : वंदे मातरम गीत का इतिहास क्या है? :- देश के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ पर आज लोकसभा में 10 घंटे की चर्चा होनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे इस चर्चा की शुरुआत करेंगे. इस गीत को लेकर सड़क से लेकर संसद तक में चर्चा तेज हो गई है।
ब्रिटिश शासन का वो फरमान, जिसके जवाब में लिखा गया ‘वंदे मातरम्’, पढ़ें 150 साल पुराने उस गीत की कहानी जिस पर संसद में होगी चर्चावंदे मातरम पर आज लोकसभा में 10 घंटे की चर्चा होगी।
खाली पेट पपीता खाने के फायदे
भारत के इतिहास में कई ऐसे पल दर्ज हैं, जो समय बीतने के बाद भी अपनी चमक नहीं खोते. आज जब हम स्वतंत्रता के संघर्ष को याद करते हैं, तो सिर्फ वीर सेनानियों की बहादुरी ही नहीं, बल्कि उन गीतों और नारों का भी स्मरण करते हैं जिनकी गूंज ने पूरे देश में स्वतंत्रता की लहर पैदा कर दी।
इन आवाजों में सबसे ऊंचा, सबसे शक्तिशाली और सबसे पवित्र स्वर था- ‘वंदे मातरम्’. देश के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ पर आज लोकसभा में 10 घंटे की चर्चा होनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे इस चर्चा की शुरुआत करेंगे।
इस गीत को लेकर सड़क से लेकर संसद तक में चर्चा तेज हो गई है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर आजादी के वक्त’वंदे मातरम’ गीत को।
सरसों का तेल और लहसुन के फायदे
यह वही रचना है जिसने गुलामी की जंजीरों को चुनौती दी, लाखों भारतीयों को एक सूत्र में बांधा और संघर्ष की राह में उनकी थकान मिटाई. आज से 150 वर्ष पहले जन्मा यह गीत आज भी वैसी ही ऊर्जा, वैसा ही गर्व और वैसा ही उन्माद जगाता है जैसा स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में जगाता था।
उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान ब्रिटिश शासन ने एक आदेश जारी किया कि सार्वजनिक संस्थानों में ‘गॉड सेव द क्वीन’ का गायन अनिवार्य होगा. यह आदेश बंकिम चंद्र चटर्जी को भीतर तक कचोट गया. उनके मन में प्रश्न उठा, क्या अपनी मातृभूमि पर भी हम विदेशी सत्ता की प्रशंसा करेंगे?
इसी क्षण उनके मन में एक नई लौ जली और उन्होंने भारत माता की स्तुति लिखने की ठान ली. वह स्तुति, जो भारतीय आत्मा को जगाए, जो संघर्षरत जनता को प्रेरणा दे और जो हर भारतीय के दिल में स्वतंत्रता की चाह को सुलगाए रखे।
रचना जिसने स्वतंत्रता संग्राम को दी दिशासन् 1875 के आसपास बंकिम चंद्र चटर्जी की कलम से ‘वंदे मातरम्’ की धुन निकली और देखते ही देखते यह रचना उपन्यास आनंद मठ से निकलकर पूरे भारत की रगों में दौड़ने लगी. जिस-जिस क्रांतिकारी ने इसे सुना, उसे लगा जैसे यह गीत सीधे उसके दिल से बात कर रहा हो. जेल की कोठरियां, फांसी का तख्ता, दमन की नीतियां-कुछ भी इस गीत की प्रेरणा को रोक नहीं पाया. ‘वंदे मातरम्’ की गूंज हर जगह सुनाई देने लगी थी।
इस रचना की खूबसूरती यह है कि इसके शुरुआती पद संस्कृत में हैं, जबकि आगे की पंक्तियां बंगाली भाषा में हैं, जो इसे सौम्यता और मधुरता देती हैं. रवींद्रनाथ टैगोर ने साल 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में जब इसे सुर के साथ प्रस्तुत किया, तो सभा में बैठे हजारों लोगों की आंखें गर्व और भावुकता से भर उठीं. बाद में अरबिंदो ने इसका अद्भुत अंग्रेज़ी अनुवाद किया, जिसने इसे दुनिया के अनेक विद्वानों तक पहुंचा दिया।
स्वतंत्र भारत ने दिया सर्वोच्च सम्मानजब देश ने 24 जनवरी 1950 को अपना संविधान अपनाया, उसी दिन वंदे मातरम् को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया. राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के समान ही इसे सम्मान का स्थान मिला. आज, 150 साल के बाद भी यह गीत न केवल पढ़ा और गाया जाता है, बल्कि यह भारतवासियों के लिए भावनाओं और प्रेरणा का सजीव स्रोत बना हुआ है।



