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सोशल मीडिया , लाइक्स की होड़ में टूटता मानसिक संतुलन

In today's digital world, social media has become an addiction.

सोशल मीडिया , लाइक्स की होड़ में टूटता मानसिक संतुलन : आज की डिजिटल दुनिया में सोशल मीडिया एक ऐसी लत बन चुकी है, जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल होता जा रहा है। सुबह उठते ही सबसे पहले फोन उठाना और रात को सोने से पहले आखिरी बार इंस्टाग्राम, फेसबुक या व्हाट्सएप चेक करना एक आदत नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक निर्भरता बन गई है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये आदतें आपकी मानसिक सेहत पर कितना बुरा असर डाल रही हैं?

डिप्रेशन का कारण बनती वर्चुअल दुनिया

आज के समय में युवाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। सोशल मीडिया पर दिखने वाली ग्लैमर और सफलता की झूठी तस्वीरें बहुत से लोगों को हीन भावना में डाल देती हैं। लोग खुद की तुलना दूसरों की जिंदगी से करने लगते हैं और यह सोचने लगते हैं कि वे पीछे रह गए हैं। यह सोच धीरे-धीरे आत्मग्लानि और डिप्रेशन को जन्म देती है।

अकेलापन बढ़ाता है सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पर हजारों फॉलोअर्स होने के बावजूद भी लोग अंदर से बेहद अकेले होते हैं। असली रिश्तों की जगह वर्चुअल चैट्स ने ले ली है। घर में परिवार के साथ बैठे हुए भी लोग एक-दूसरे से कटे रहते हैं। यह सोशल अलगाव एक ऐसा मानसिक दबाव बन जाता है, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे समाज से काट देता है।

आत्मविश्वास में आती है गिरावट

लगातार सोशल मीडिया पर समय बिताने वाले लोग वास्तविक दुनिया से जुड़ना भूल जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी पहचान केवल ऑनलाइन मौजूदगी तक सीमित है। जब वे रियल लाइफ इंटरैक्शन से सामना करते हैं, तो आत्मविश्वास की भारी कमी महसूस होती है। ऐसे लोग सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखने में हिचकिचाते हैं।

नींद और स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव

रात भर मोबाइल स्क्रोलिंग करने वाले लोग अक्सर नींद पूरी नहीं कर पाते, जिससे अगली सुबह उनींदापन, चिड़चिड़ापन और थकान महसूस होती है। यह आदत शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक संतुलन को भी बिगाड़ती है।

सामाजिक जीवन को निगल रहा डिजिटल टाइम

जहां पहले परिवार के साथ समय बिताया जाता था, आज वहां हर उम्र का इंसान अपने गैजेट्स में डूबा रहता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सबका ध्यान अब मोबाइल में केंद्रित हो गया है। अगर समय रहते इस आदत पर रोक नहीं लगाई गई, तो आने वाली पीढ़ी से परिवार, संस्कार और स्वास्थ्य की समझ पूरी तरह खत्म हो सकती है।

Leena Kumari

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