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पैसा, पहुंच और दबंगई, दूध बेचते-बेचते बाहुबली से मंत्री बनने वाले डीपी यादव की कहानी

In the early 70s, Dharampal came in contact with liquor mafia Kishan Lal and got involved in liquor smuggling.

पैसा, पहुंच और दबंगई, दूध बेचते-बेचते बाहुबली से मंत्री बनने वाले डीपी यादव की कहानी :-  उत्तर प्रदेश में एक नाम जिसे कहा जाता है बाहुबली डॉन ….. सियासत में खिलाडी और रिश्ता दूध की डेयरी से ….. आप सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है तो खोजी नारद की इस रिपोर्ट में एक ऐसे ही शक्श की कहानी आपको बताते हैं जो शुरू हुयी नोएडा सेक्टर 18 के पास एक गांव है शरफाबाद से… .

60 की दशक में यहां रहने वाले धर्मपाल यादव नाम के शख्स डेयरी का कारोबार करते थे. वह साइकिल लेकर रोजाना दूध बेचने दिल्ली जाते थे. उस वक्त लोगों के साथ-साथ उन्हें भी इस बात का दूर-दूर तक अंदाजा नहीं था कि आने वाले दशकों में वह बाहुबली डीपी यादव नाम से कुख्यात हो जाएंगे. देखते ही देखते इस शख्स की किस्मत ने ऐसे करवट ली कि वह अपराध की दुनिया का स्वयंभू बादशाह बन गया. साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री पद तक पहुंच गया।

पीरियड्स के दौरान इन बातों का रखे ध्यान

70 की दशक के शुरुआत में धर्मपाल शराब माफिया किशन लाल के संपर्क में आया और शराब की तस्करी में शामिल हो गया. उसने अपना एक गैंग भी बना लिया. दूध बेचने वाले वाले धर्मपाल का लग्जीरियस लाइफ जीने वाले डीपी यादव के कुख्यात होने की शुरुआत यहीं से हुई. 90 का दशक आते-आते डीपी यादव शराब का बड़ा कारोबारी बन चुके थे।

इस दौरान हरियाणा में कच्ची शराब पीने से तकरीबन 350 लोग मर गए. आरोप लगा डीपी यादव पर. लेकिन हरियाणा पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई.पैसा, पहुंच और दबंगई के चलते डीपी यादव खुद को बचा ले गए।

सियासत में ऐसे हुई एंट्री

अपराध की दुनिया में भरपूर नाम कमाने के बाद डीपी यादव ने सिसायत की ओर रुख करने का फैसला. शराब के कारोबार के दौरान ही वह दिग्गज कांग्रेसी नेता महेंद्र भाटी के संपर्क में आए. महेंद्र भाटी ने उसे राजनीति का ककहरा सिखाया और बिसरख का ब्लॉक प्रमुख बनाने में भी मदद की. लेकिन डीपी के राजनीति करियर को असल में पंख तब लगे जब वह मुलायम सिंह यादव के संपर्क आए. दरअसल, उस वक्त जनता दल से अलग होकर मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी बनाई।

खाली पेट पपीता खाने के फायदे

मुलायम को धनबल जरूरत थी तो डीपी को रसूख के लिए मंच तो दोनों का आसानी में मिलन हो गया. डीपी 1993 में बुलंदशहर से विधायक चुने गए और मुलायम सरकार में सीधे पंचायती राज मंत्री बन गए. विधायक के अलावा बसपा के टिकट पर संभल से सांसद भी बने. वह एक बार स्वतंत्र उम्मीदवार और एक बार भाजपा के टिकट पर राज्यसभा भी पहुंचे ।

लगा अपने ही राजनैतिक गुरू की हत्या का आरोप

समाजवादी पार्टी की सरकार में डीपी का रसूख इतना बढ़ गया कि वह जैसा चाहता वैसा हो जाता. कहते हैं कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूरे इलाके पर अपना प्रभुत्व चाहते थे. लेकिन अपने राजनीतिक गुरु और दादरी से विधायक महेंद्र सिंह भाटी के रहते ऐसा नहीं कर सकता थे. ऐसे में उनपर अपने ही राजनैतिक गुरू महेंद्र सिंह भाटी की हत्या का आरोप लगा था।

इस मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा भी हुई थी.लेकिन नवंबर 2021 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सबूतों के आभाव में उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया. बता दें कि डी पी पर नौ हत्या, तीन अटेंम्प्ट टू मर्डर, दो डकैती, अपहरण औऱ फिरौती के मामले हैं. उनपर टाडा और गैंगस्टर एक्ट के तहत भी कार्रवाई हो चुकी है।

समाजवादी पार्टी से ऐसे टूटा डीपी यादव का रिश्ता

डीपी यादव की अपराधिक छवि के चलते समाजवादी पार्टी को नुकसान होने लगा. 1998 आते-आते मुलायम सिंह यादव ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया. दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि वह मुलायम के खिलाफ ही संभल से चुनाव लड़ने पहुंच गए. बाद में रामगोपाल यादव के खिलाफ भी वह चुनाव लड़े. लेकिन दोनों में ही उसे हार नसीब हुई।

सपा से मोहभंग होने के बाद डीपी यादव ने पहले भाजपा, फिर बाद में बसपा में भी पहुंचे, लेकिन उनकी अपराधिक इमेज और लोगों के विरोध के चलते उन्हें वहां से भी किनारे कर दिया. साल 2012 में डीपी यादव फिर से सपा में वापसी की कोशिशों में लगे हुए थे, लेकिन अखिलेश यादव ने उसके इस प्रयास को सफल नहीं होने दिया.खबर मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है।

Leena Kumari

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