केदारनाथ उपचुनाव: साख की लड़ाई में कौन जीतेगा?
The campaigning for the Kedarnath assembly by-election came to an end on Monday evening.
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रचार का शोर सोमवार शाम को थम गया। अब भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल मतदान से पहले अपनी अंतिम रणनीतियाँ तैयार करने में जुट गए हैं। यह उपचुनाव केवल एक सामान्य चुनाव नहीं है, बल्कि दोनों प्रमुख दलों के लिए साख और प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है। भाजपा के लिए यह सीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी हुई है, वहीं कांग्रेस इसे बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव की पुनरावृत्ति की उम्मीद के तौर पर देख रही है।
भाजपा की पूरी उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी हुई है। वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा के बाद, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी ली थी। दस वर्षों में केदारनाथ धाम नए रूप में निखर चुका है, और प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं।
इसके अलावा, राज्य और केंद्र में भाजपा की एक ही सरकार होने के कारण “डबल इंजन” की सरकार का प्रभाव भी उत्तराखंड में साफ देखा जा रहा है। भाजपा ने राज्य और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं, खासकर केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण कार्य, को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है। पार्टी को भरोसा है कि पीएम मोदी के नाम और उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों से उन्हें जीत मिलेगी।
राज्य की धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता, सख्त नकलरोधी कानून, लव जिहाद और जनसांख्यिकीय बदलाव जैसे मुद्दों को भी अपने प्रचार का हिस्सा बनाया है, जो उपचुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस उपचुनाव के दौरान पांच जनसभाओं को संबोधित किया, साथ ही दो बाइक रैलियों में भी भाग लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता, गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी और कई मंत्री भी चुनावी प्रचार में सक्रिय रहे हैं।
वहीं कांग्रेस, जो पिछले दस वर्षों में भाजपा के खिलाफ हर चुनावी मोर्चे पर हारती आई है, इस बार भी अपनी रणनीति में कुछ बदलाव के साथ मैदान में उतरी है। इस साल कांग्रेस को दो विधानसभा उपचुनावों में सफलता मिली है, और इन जीतों ने पार्टी में नया उत्साह और संजीवनी का काम किया है। यही कारण है कि कांग्रेस अब अपनी पूरी ताकत के साथ भाजपा को घेरने की कोशिश में है।
कांग्रेस का उद्देश्य भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के मुद्दे को प्रमुख बनाना है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल समेत कई वरिष्ठ नेता केदारनाथ क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे। उनकी कोशिश थी कि इस उपचुनाव को भी बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव की तरह भाजपा के खिलाफ व्यूह रचना के रूप में लड़ा जाए।
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कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि भाजपा के शासन के दौरान पिछले सात से दस वर्षों में राज्य और केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता में गहरी नाराजगी बढ़ी है। इसका फायदा उठाकर वे भाजपा को टक्कर देने की योजना बना रहे हैं।
केदारनाथ विधानसभा सीट रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, और यह सीट भाजपा विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण रिक्त हुई है। लगभग 90 हजार मतदाताओं वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में महिला मतदाता पुरुषों से अधिक हैं, और इस बार भाजपा ने आशा नौटियाल को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने मनोज रावत को मैदान में उतारा है। दोनों उम्मीदवार पहले इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, और यह मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है।
इसके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवार त्रिभुवन सिंह चौहान भी क्षेत्र में चर्चा का विषय बने हुए हैं। माना जा रहा है कि इन निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलने वाले वोट परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं, और इनका असर जीत-हार के अंतर को तय कर सकता है।