जंगल का रहस्य और शिकारी की कहानी: जिम कॉर्बेट के अनसुने किस्से
Today's new generation may not know much about him, so let us tell you an interesting story related to that personality today.

जंगल का रहस्य और शिकारी की कहानी, जिम कॉर्बेट के अनसुने किस्से : आज हम बात कर रहे हैं एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट यानी जिम कॉर्बेट की , आज की नई पीढ़ी को शायद उनके बारे में ज्यादा जानकारी न हो तो चलिए हम आज उन्हीं शख्सियत से जुडी रोचक कहानी को बताते हैं। जिम कॉर्बेट एक शिकारी और महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे. उन्होंने साल 1907 से साल 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगह नरभक्षी बाघों व तेंदुओं के आतंक से निजात दिलायी थी. इसके अलावा जिम कॉर्बेट ने 6 किताबें भी लिखी हैं. इनमें से कई पुस्तकें पाठकों को काफी पसंद आईं, जो आगे चलकर काफी लोकप्रिय हुईं।
उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था जिम कॉर्बेट का जन्म –
मशहूर शिकारी एडवर्ड जेम्स जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था. नैनीताल में जन्मे होने के कारण जिम कॉर्बेट को नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों से बेहद लगाव था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में ही पूरी की. अपनी युवावस्था में जिम कॉर्बेट ने पश्चिम बंगाल में रेलवे में नौकरी कर ली, लेकिन नैनीताल का प्रेम उन्हें नैनीताल की हसीन वादियों में फिर खींच लाया.कालाढूंगी में बनाया था घर: जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी. सर्दियों में यहां रहने के लिए जिम कॉर्बेट ने एक घर बना लिया और 1922 में यहां रहना शुरू कर दिया. गर्मियों में वो नैनीताल में गर्मी हाउस में रहने के लिए चले जाया करते थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया. जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है. उस दौर में छोटी हल्द्वानी में चौपाल लगा करती थी।
वन विभाग ने जिम कॉर्बेट की अमूल्य धरोहर को आज एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया है. हजारों की तादाद में देश-विदेश से सैलानी जिम कॉर्बेट से जुड़ी यादों को देखने के लिए आते हैं. जिम कॉर्बेट का नाम महान शिकारियों में जाना जाने लगा. कई आदमखोर बाघों का शिकार करने के बाद जिम के मन में वन्यजीवों के प्रति प्रेम बढ़ गया.हृदय परिवर्तन होने के कारण जिम कॉर्बेट ने बाघों के संरक्षण के लिए काम करना शुरू कर दिया. फिर उसके बाद जिम कॉर्बेट ने कभी बाघ या अन्य जानवरों को मारने के लिए बंदूक नहीं उठाई. इसके अलावा उन्होंने सामाजिक कार्यों से लोगों की मदद की. जिस कारण उनके सम्मान में भारत सरकार ने साल 1955 में राष्ट्रीय उद्यान रामगंगा नेशनल पार्क का नाम बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया।
जिम कॉर्बेट एक असाधारण और बेहद साहसिक नाम है. उनकी वीरता के कारनामे हैरत में डालने वाले हैं. जिम कॉर्बेट एक महान शिकारी थे. उनको तत्कालीन अंग्रेज सरकार आदमखोर बाघ को मारने के लिए बुलाती थी. गढ़वाल और कुमाऊं में उस वक्त आदमखोर बाघ और गुलदार ने आतंक मचा रखा था. उनके खात्मे का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है।
साल 1907 में चंपावत शहर में एक आदमखोर 436 लोगों को अपना निवाला बना चुका था. तब जिम कॉर्बेट ने लोगों को आदमखोर के आतंक से मुक्त कराया था. जिम ने 1910 में मुक्तेश्वर में जिस पहले तेंदुए को मारा था, उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था. जबकि दूसरे तेंदुए ने 125 लोगों को मौत के घाट उतारा था. उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था. जिम कॉर्बेट ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक के बाद एक सभी आदमखोरों को मौत की नींद सुला दिया था. कहा जाता है कि जिम कॉर्बेट ने 31 साल में 19 आदमखोर बाघ और 14 आदमखोर तेंदुओं को ढेर किया था. इस तरह उन्होंने कुल 33 आदमखोर बाघ और तेंदुओं को ढेर कर आम जन को राहत दिलाई थी।