उत्तराखंड में निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सुलझा
The long-standing OBC reservation issue in Uttarakhand has finally been resolved.
उत्तराखंड में लंबे समय से चला आ रहा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण का मुद्दा आखिरकार सुलझ गया है। राज्यपाल ने निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित अध्यादेश को मंजूरी दे दी है, जिससे अब राज्य के नगर निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण मिलेगा। इस निर्णय के साथ ही राज्य में निकाय चुनाव की प्रक्रिया को गति मिलेगी और आगामी कुछ दिनों में चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावना जताई जा रही है।
ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कानूनी मंजूरी
उत्तराखंड के निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण लागू करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने राजभवन को एक अध्यादेश भेजा था। विधि विभाग द्वारा इसके लिए कानूनी राय दी गई थी, जिसके बाद राजभवन ने इस पर अपनी मंजूरी दी। इससे पहले, राजभवन ने कुछ कानूनी मामलों का हवाला देते हुए इस अध्यादेश को रोक दिया था और शासन से विधि विभाग से पुनः राय मांगी थी। इसके बाद, विधि विभाग ने इसे सही ठहराते हुए राज्यपाल को इसे मंजूरी देने की सिफारिश की। अब, राज्यपाल की मंजूरी के बाद ओबीसी आरक्षण लागू करने की प्रक्रिया को तेज कर दिया जाएगा।
ओबीसी आरक्षण के तहत होगा निकाय चुनाव
राज्य में निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण को लेकर एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाया जाएगा। यह रिपोर्ट ओबीसी वर्ग के लिए उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। इस रिपोर्ट के आधार पर अब आरक्षण लागू किया जाएगा और चुनावों का रास्ता साफ हो जाएगा।
विधि विभाग ने राज्यपाल से यह सिफारिश की थी कि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को कानूनी रूप से सही ठहराया जा सकता है, और राज्यपाल ने इस पर अपनी मंजूरी दे दी। अब यह निर्णय लिया गया है कि राज्य में ओबीसी आरक्षण के अंतर्गत निकाय चुनाव होंगे, जिससे इस वर्ग को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सेदारी मिलेगी।
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चुनाव की अधिसूचना का इंतजार
राज्य में ओबीसी आरक्षण के मसले के सुलझने के बाद अब निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावना है। सरकार और चुनाव आयोग ने तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस महीने के अंत तक निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है, जिससे चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत होगी।
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उत्तराखंड के नगर निकाय चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इससे ओबीसी वर्ग के लोगों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सकेगा और वे अपने अधिकारों के लिए बेहतर तरीके से आवाज उठा सकेंगे। साथ ही, इससे राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में और अधिक समावेशिता सुनिश्चित होगी।