Badrinath Dham के कपाट 17 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद
This year, the process of closing the winter doors in Uttarakhand's Badrinath Dham will be completed on November 17.

उत्तराखंड के Badrinath Dham में इस वर्ष शीतकालीन कपाट बंद होने की प्रक्रिया 17 नवंबर को पूरी होगी। बदरीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर को रात 9 बजकर 7 मिनट पर बंद किए जाएंगे। शीतकाल के दौरान मंदिर की पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान जोशीमठ और पांडुकेश्वर में आयोजित होंगे। इससे पहले, 13 नवंबर से पंच पूजाओं का आयोजन शुरू हो जाएगा, जिसमें भगवान गणेश से लेकर अन्य प्रमुख देवताओं की पूजा की जाएगी।
पंच पूजाओं के तहत 13 नवंबर से धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत होगी। पहले दिन भगवान गणेश की पूजा की जाएगी, और शाम को गणेश के कपाट भी बंद कर दिए जाएंगे। दूसरे दिन, 14 नवंबर को आदि केदारेश्वर मंदिर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद होंगे। तीसरे दिन, 15 नवंबर को खड्ग-पुस्तक पूजन और वेद ऋचाओं का वाचन बंद कर दिया जाएगा। चौथे दिन, 16 नवंबर को मां लक्ष्मी को कढ़ाई भोग चढ़ाया जाएगा। इसके बाद 17 नवंबर को रात 9 बजकर 7 मिनट पर बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, 18 नवंबर को कुबेर, उद्धव और रावल पंढित आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वरऔर नृसिंह मंदिर जोशीमठ के लिए रवाना होंगे। यह प्रवास शीतकाल के दौरान होगा और इस दौरान पूजा अनुष्ठान पांडुकेश्वर और जोशीमठ में आयोजित किए जाएंगे। उद्धव और भगवान कुबेर शीतकाल में पांडुकेश्वर प्रवास करेंगे। इसके बाद, 19 नवंबर को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर पहुंचेगी, जहां पूरे सम्मान और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ गद्दी की स्थापना की जाएगी।
ये भी पढ़े: IAS अफसर से अभद्रता, जान से मारने की धमकी
उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा का महत्व पूरे देशभर में विशेष है, और हर साल तीर्थ यात्रियों की भारी संख्या में भीड़ यहां आती है। पहले ही नवंबर के पहले सप्ताह में केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री धाम के कपाट बंद हो चुके हैं। इसके अलावा, रुद्रनाथ और तुंगनाथ मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद हो चुके हैं। इसी क्रम में, मद्महेश्वर मंदिर के कपाट 20 नवंबर को बंद कर दिए जाएंगे।
बदरीनाथ धाम में शीतकालीन कपाट बंद होने के बाद वहां के धार्मिक अनुष्ठान पांडुकेश्वर और नृसिंह मंदिर जोशीमठ में आयोजित होंगे, जहां रावल और अन्य पवित्र गद्दियां शीतकाल के दौरान पूजा-अर्चना करती रहेंगी। शीतकालीन प्रवास के दौरान इन स्थानों पर विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे।